Tuesday, January 10, 2023

Hospital Beep Beep Beep

I’m all alone.

Day – night seem the same. I’m always engulfed by a sharp, white light.

I still haven’t warmed up to this hospital bed.

Home is a distant memory. One I dream about with my eyes open and closed. It seems cheerier than I knew it to be. Maybe time has blurred the sadness. Perhaps my present is bleaker.

I’ve not breathed on my own in days. It could be weeks before I can. Or I just might not survive this. Hence, no breathing required.

The nurses, their kind faces, drift in and out like a haze. They check my vitals, note down readings, ensure the tubes are in place. A needly prick here and there, reassuring pats, supportive words.

It could be my imagination, but it often feels like I’m not here.

The doctors come and go, adjusting and readjusting my medicines. Their latex fingers upon my face, shining light into my eyes. Don’t they know I’m already enlightened?

Sickness is the greatest revealer. It pierces the heart and mind, eliminating all sorts of misconceptions and bias. What remains is raw and tender, a painful reminder of life’s delicate nature.

They often whisper. Don’t they know I can hear them? No family, no friends, no sympathetic visitor.

I want to laugh. But this tube in my mouth makes it difficult.

Friendship and love are frivolous, often destroyed by abundant greed and jealousy. A loyal enemy is a much more prized entity.


My bed sores are my real companions. They speak to me. I listen to their muddled words. We argue and fight, but always make up. They express my reality. I forgive the hurt they give me.

Beep…beep…beep…

The sound of life is so lifeless. So monotonous.

But then there’s nothing exciting about being in  hospital bed.

Saturday, February 26, 2022

एक फ़ौजी की चिट्ठी

प्रिय 

 तुम्हारी सदा शिकायत रहती है कि मैं तुम्हें कम पत्र लिखता हूं। तुम्हारी शिकायत सही हैतुम्हें मैं इसलिए पत्र नहीं लिखता की कहीं भूलेसे भी तुम्हें मेरे तकलीफ का अंदाजा  हो जाए पर एक सीक्रेट बताऊंमैं रोज तुमसे बात करता हूं।


इस समय मैं बंकर में बैठा हूं। कंकरीली-पथरीली जमीन हैऊपर से झाड़ियों का पर्दा बना रखा है ताकि दुश्मन को हमारे यहां होने काअंदाजा  हो जाए। खतरे की तलवार हर समय लटकती रहती हैअब तुम्हीं बताओ ये सारी बातें तुम्हें कैसे बता सकता हूं?

 चांदतू गवाह बन मेरी अनकही कहानी का। तू जा मेरी प्रिया के पास। इस समय वह छत पर टहल रही होगी क्योंकि खाना खाने केबाद हमेशा वह छत पर टहलने जाया करती है। उसपर मेरा प्यार बरसानाहवा बनकर उसकी लटों को छेड़नाकभी उसकी चुन्नी को उड़ादेना। अगर वह परेशान होकर बालों को बांध ले तो धीरे से उसके गालों को सहलाकर मेरे प्यार का संदेश दे देना। शायद उसका विरहकुछ कम हो जाए।


अपनी दिनचर्या के बारे में बताऊंसुबह होते ही पी.टीके लिए जानावहां से आकर नहा-धोकर सुबह के नाश्ते के लिए मेस पहुंचनाफिर अपने-अपने काम पर लग जानापैरों में भारी-भारी बूटतपती चिलचिलाती गर्मी में मोटे कपड़े की आर्मी ड्रेसकंधे पर पूरे दिनलटकती बंदूकदुश्मनों से लड़ते समय कई बार भोजन का  मिलनाकई-कई किलोमीटर पैदल चलनाजहरीले जीव-जंतुओं से भीआमना-सामना होना-ये सब हमारी जिंदगी का हिस्सा हैं।


दुनिया मुझे वीर कहती है। शहादत पर तमगे पहनाती है पर सच कहूं तो सच्ची वीरांगना तुम हो। मैंने देश सेवा को सहर्ष चुना है औरतुमने तो मुझे चुना था और पाया विरह। मैं कर्मयोगी बन प्रशंसा पाता रहा तुम दीपशिखा सी जलती रही। मैं देश सेवा में शहीद हो जाऊंतो मेरी प्रशंसा में कहानियां गढ़ी जाती है और तब आरंभ हो जाती है पग-पग पर तुम्हारी परीक्षा। मैं देश सेवा में निरत वीर सिपाही अपनेकर्तव्य का वहन इसलिए कर पा रहा हूं क्योंकि तुम वहां मेरे परिवार का संबल बनी हुई हो। मैं धरती मां की सेवा इसलिए कर पा रहा हूंक्योंकि तुम मेरे माता-पिता की सेवा कर रही हो।


देखो तुम्हारे बारे में सोचते-सोचते सुबह हो गई। पूरब में सूरज की लालिता बिखरने लगी। जब तुम्हारे बारे में सोचता हूं तो कष्ट कम होजाता है। कम नहीं हो जाता बल्कि पता ही नहीं चलता। तुम्हारी यादें मेरे लिए आराम का तकिया हैं। तुम्हारी बातें मेरे लिए अकेलेपन मेंभी साथ का अहसास दे जाती हैं। अरे रेये मत सोचना कि तु्म्हारे बारे में सोचते-सोचते मैं कर्तव्य पथ से डिग जाऊंगा।

मैं उस पथ का राही हूं जिसने बस चलना ही सीखा हैआंधी आएं या तूफान कभी  डिगना सीखा है।

ऐसी अनेक बातें हैं जो प्रतिदिन मैं सोचता हूं पर लिख नहीं पाता। आज भी नहीं लिख पा रहा हूं। शायद अनेक पत्रों की तरह ये भी मेराअनकहा प्रेमपत्र बनकर रह जाएगा।


तुम्हारा 


Tuesday, February 22, 2022

कपड़े और हमारी सोच तीन विचार



हमारे आस पास चारों तरफ बहुत से लोग होते है। जिन्हें हम रोज देखते है लेकिन जानते नही है  वे हमारे पड़ोसी हो सकते हैदूर कीजान - पहचान के लोग हो सकते हैराह में चलने वाले लोग भी हो सकते है या social media पर किसी के photo भी हो सकते है।

जब तक हम किसी व्यक्ति को करीब से नही जानते है तब तक हम उनके पहनावे से ही उसके व्यक्तित्वचरित्रव्यवहार तथा व्यवसायआदि के बारे में अनुमान लगाते हैं 

उदाहरण के लिए ... गली से गुजरने वाले किसी टपोरी टाइप के कपड़े पहनने वाले व्यक्ति को आप एक पढ़ा लिखा MNC में काम करनेवाला officer नही समझ सकते | या हजारों रुपये की सिल्क की डिजाइनर साड़ी पहनी हुई महिला को आप एक साधारण घर कीमहिला नही समझ सकते |

इसी तरह की बहुत सी अवधारणाएं हमारे दिमाग में पहले से बनी बनाई होती है। अगर एक लड़की मार्डन कपड़े पहनती है तो वहसंस्कारी नही है या किसी ने मैले - कुचेले साधारण से कपड़े पहने है तो इसमें बिल्कुल भी ज्ञान नही है इत्यादि 

लेकिन हमेशा यह आकलन सही हो यह जरूरी नही  इसके लिए एक किस्सा सोचा है 

कजिन चाचा जी की लड़की नैना जिन्होने CA किया हुआ था  बहुत शांत  समझदार किस्म की लड़की हर कार्य मे निपुण  यू कहसकते है कि ऑल राउंडर 

उसे ज्यादा सजना-संवरना या डिजायनर कपड़े पहनने का कोई शौक नही था  बहुत सिंपल रहती थी।

उनके रिश्ते की बात चल रही थी  बहुत से रिश्ते  रहे थे और उन पर विचार विमर्श भी चल रहा था।

एक लड़के का रिश्ता आया जो Software engineer था और Tokyo में उसकी अच्छी Job थी 

सबको वो रिश्ता पसंद  रहा था इसलिए कुण्डलिया मिलवाई गई  वो भी मिल गई  घर परिवार दोनों तरफ से पसंद था तो लड़केवालों को बोला गया कि आगे बात करने में हम intrested है 

तब लड़के वालो ने बोला कि 3 महीने बाद जब लड़का india आयेगा तब बात आगे बढ़ाएगें 

इसी बीच एक दिन हमारे एक रिश्तेदार लड़के के मामा को लेकर सीधा नैना के ऑफिस जा पहुॅचे उसे देखने के लिए  वो भी बिनाकिसी को बताए 

वह उस दिन भी हमेशा की तरह अपने रूटीन कपड़ो में ही थी एक दम सिंपल सी।

लड़के के मामा ने नैना को देखा फिर वे चले गए। नैना को तो पता भी नहीं था कि कोई उसे देखने के लिए आया है।

कुछ दिनों बाद जब वो रिश्तेदार हमारे घर पर आये तब उन्होने बताया कि लड़के के मामा को नैना पसंद नही आयी 

वो कह रहे थे कि लड़की में कपड़ो का कोई सेंस ही नही है वह कही से भी एक educated लड़की नही लगती  वह हमारी Family मेंकैसे सेट होगीं। इसलिए हमें पसंद नही है।

ठीक है। नही पसंद तो कोई बात नही मेरे चाचाजी ने कहा 

कुछ महिनों बाद नैना की शादी एक बहुत ही अच्छे घर - परिवार में हुई लड़का भी CA ही मिला और उस परिवार में वह खुश भी है।

अभी भी वह बहुत सिंपल ही रहती है लेकिन त्यौहार  शादी आदि के मौको पर जब वह अच्छे से तैयार होती है तब बहुत खुबसूरत लगतीहै।

अब आपका प्रश्न क्या इंसान को उसके पहने जाने वाले कपड़े से जज करना सही हैक्यों और क्यों नहीं ?

यहां पर लड़के के मामा ने नैना को उसके कपड़ो से जज किया और एक अच्छा रिश्ता खो दिया 

मेरे विचार से किसी भी इंसान को उसके कपड़ो से जज किया जाना सही नही है  क्योकि किसी भी इंसान का व्यक्तित्व उसके कपड़ो सेबहुत उपर होता है।



राम नाम सत्य है। है के नहींतो बोलो  किसी के विवाह में!

हा हा हा !!!

मेरे अनुसार तो कपड़ों का सोच से नहींप्रसँग से लेना देना है। जैसे इंटरव्यू में जाके कोई जिम के कपडे पहरेया ओफ्फिस में कोई पार्टीके कपडे पहरेया दोस्तों के साथ कोई भारी गहनों वाले शादी के बस्तर पहरे तो अजीब तो लगेगा ही !

अब यदि आजका आधुनिक सभ्य समाजबड़ों का आदर  करे तो उसका क्या कर सकते हैं। बचपन से हमकोमर्दों को सिखाया गयाथा बड़ों के सामने पैर फैला के मत बैठोऔर अगर बड़े  जाएँ तो खड़े होऔर बड़ों/महिलाओं के सामने धोती आधी करके मत घूमोंपूरे कपडे पहरो। येही संस्कार महिलाओं को दिए जाते हैं,लेकिन तब याद आता है आधुनिकीकरण।

अरे भाई बीच में तो बिकिनी ही पहरोगे तब कौन कुछ बोलेगाया दोस्तों के सारः हो तो कुछ भी पहरो। लेकिन मन्दिर होयाओफ्फिस होया जिम होवहाँ तो बिकिनी नहीं पहरोगे स्थान के अनुसार और व्यक्ति के अनुसार वस्त्रों का चयन होना चाहिए।

अरे मैं क्या शॉर्ट्स नहीं पहरताक्या मेरा मन नहीं करता गर्मी में गंजी में घूमने कातो क्या महिलाओं के सामने गंजी में घूमूँयामहिलाओं के सामने आधी धोती में घूमूँ?

और किसी के सोच में तकलीफ नहीं हैबस आधुनिक औरतों को बात का बतंगड़ बनाना है।

बाकी यह उत्तर मवालियों और असभ्य लोगों के लिए नहींवे तो औरत के कपड़े नहीं देखते। वे तो कामकृपण लोग हैं। उनकी बात मैं नहींकर रहा। मैं सभ्य समाज में रहने वाके सभ्य लोगों की बात कर रहा हूँ।


मेरा यह भी मानना है कि हम दूसरे लोगों की सोच एकदम से नहीं बदल सकते। मुझे याद है 90 के दशक में जब हम स्कूल में थे तोलड़की का जीन्स पहनना बहुत खुली सोच का परिचायक माना जाता था। जब कोई लड़की जीन्स पहने निकलती थी तो सब लोग उसेघूर घूर कर देखते थे। आज यह बात आम हो गयी है। क्योंकि लोग यानी पुरुष आए दिन लड़कियों को जीन्स में देखते हैं तो खास ध्याननही देते। लेकिन यदि आज कोई वयस्क लड़की एक छोटी सी स्कर्ट पहन कर  जाती है तो सब तो नहीं पर बहुत सारे लोग उसे घूरनेलगेगें क्योंकि इनकी आँखे अभी यह सब देखने की अभयस्त नहीं हुई हैं। कुछ दशक बाद हो जायेंगी। मुझे याद है एक स्कूल मेंलड़कियों के 11–12 वी कक्षा में स्कर्ट्स पहनने पर रोक लगा दी गयी क्योंकि लड़के अपनी आंखों से सिर्फ स्कर्ट्स की लंबाई ही नापतेरहते थे।


अब विदेशों में यह बात आम हैं कोई देखेगा तक नहीं पर भारतवर्ष में अगर आप छोटे कपडे पहन कर चल रही हैं तो बेवजह ही अपनीऔर घूरती आँखे महसूस करेंगी। मेरे विचार से तो यह सब बहुत ही असुविधाजनक है। क्योंकि आज भी सिर्फ बहुत कम लड़कियां छोटेकपड़े पहनती हैं इसलिए लोग यह समझते है कि यह सामान्य बात नही हैं और जो लड़की ऐसा कर रही हैं वो खुले सोच विचार की हैंऔर शादी से पहले सम्बन्ध को तैयार हो जाएगी। सोच तो बिल्कुल गलत है पर क्या करें यकायक तो बदलेगी नहीं। 2–3 दशक लगेगेंजब ज्यादा से ज्यादा लड़कियां अपने हिसाब से जो चाहे पहन सकेगी 

लेकिन तब तक अपना ध्यान रखें और छोटे इलाकों में परहेज ही करें छोटे कपड़े पहनने से। अब आप चाहे रूढ़िवादी समझे मेरा यहमानना है कि आपका शरीर अपना है और आपको उसका ध्यान भी रखना चाहिए। अगर छोटे कपड़े  पहनने से आपकी आज़ादी परअंकुश लगता है पर आप बेवजह की ठरकी घूरती आंखों से छुटकारा पा सकती हैं तो क्या हर्ज है। उदहारण के लिए यदि आप अपनीगाड़ी जो कि धूल से भरी हो उसे सड़क पर छोड़ जाते हैं तो कोई  कोई शैतान दिमाग उसपर कुछ  कुछ लिख कर चला जायेगा लेकिनअगर आप उसे साफ सुथरी रखेंगे और उस पर कोई धूल  हो तो कोई हिम्मत नहीं करेगा। छोटे कपड़े आपके शरीर पर धूल तो नहीं हैलेकिन धूल लोगों की आंखों में है जो छोटे कपड़ों को गलत समझती है।