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हमारे आस पास चारों तरफ बहुत से लोग होते है। जिन्हें हम रोज देखते है लेकिन जानते नही है । वे हमारे पड़ोसी हो सकते है, दूर कीजान - पहचान के लोग हो सकते है, राह में चलने वाले लोग भी हो सकते है या social media पर किसी के photo भी हो सकते है।
जब तक हम किसी व्यक्ति को करीब से नही जानते है तब तक हम उनके पहनावे से ही उसके व्यक्तित्व, चरित्र, व्यवहार तथा व्यवसायआदि के बारे में अनुमान लगाते हैं ।
उदाहरण के लिए ... गली से गुजरने वाले किसी टपोरी टाइप के कपड़े पहनने वाले व्यक्ति को आप एक पढ़ा लिखा MNC में काम करनेवाला officer नही समझ सकते | या हजारों रुपये की सिल्क की डिजाइनर साड़ी पहनी हुई महिला को आप एक साधारण घर कीमहिला नही समझ सकते |
इसी तरह की बहुत सी अवधारणाएं हमारे दिमाग में पहले से बनी बनाई होती है। अगर एक लड़की मार्डन कपड़े पहनती है तो वहसंस्कारी नही है या किसी ने मैले - कुचेले साधारण से कपड़े पहने है तो इसमें बिल्कुल भी ज्ञान नही है इत्यादि ।
लेकिन हमेशा यह आकलन सही हो यह जरूरी नही । इसके लिए एक किस्सा सोचा है ।
कजिन चाचा जी की लड़की नैना जिन्होने CA किया हुआ था । बहुत शांत व समझदार किस्म की लड़की हर कार्य मे निपुण । यू कहसकते है कि ऑल राउंडर ।
उसे ज्यादा सजना-संवरना या डिजायनर कपड़े पहनने का कोई शौक नही था । बहुत सिंपल रहती थी।
उनके रिश्ते की बात चल रही थी । बहुत से रिश्ते आ रहे थे और उन पर विचार विमर्श भी चल रहा था।
एक लड़के का रिश्ता आया जो Software engineer था और Tokyo में उसकी अच्छी Job थी ।
सबको वो रिश्ता पसंद आ रहा था इसलिए कुण्डलिया मिलवाई गई । वो भी मिल गई । घर परिवार दोनों तरफ से पसंद था तो लड़केवालों को बोला गया कि आगे बात करने में हम intrested है ।
तब लड़के वालो ने बोला कि 3 महीने बाद जब लड़का india आयेगा तब बात आगे बढ़ाएगें ।
इसी बीच एक दिन हमारे एक रिश्तेदार लड़के के मामा को लेकर सीधा नैना के ऑफिस जा पहुॅचे उसे देखने के लिए । वो भी बिनाकिसी को बताए ।
वह उस दिन भी हमेशा की तरह अपने रूटीन कपड़ो में ही थी एक दम सिंपल सी।
लड़के के मामा ने नैना को देखा फिर वे चले गए। नैना को तो पता भी नहीं था कि कोई उसे देखने के लिए आया है।
कुछ दिनों बाद जब वो रिश्तेदार हमारे घर पर आये तब उन्होने बताया कि लड़के के मामा को नैना पसंद नही आयी ।
वो कह रहे थे कि लड़की में कपड़ो का कोई सेंस ही नही है वह कही से भी एक educated लड़की नही लगती । वह हमारी Family मेंकैसे सेट होगीं। इसलिए हमें पसंद नही है।
ठीक है। नही पसंद तो कोई बात नही मेरे चाचाजी ने कहा ।
कुछ महिनों बाद नैना की शादी एक बहुत ही अच्छे घर - परिवार में हुई लड़का भी CA ही मिला और उस परिवार में वह खुश भी है।
अभी भी वह बहुत सिंपल ही रहती है लेकिन त्यौहार व शादी आदि के मौको पर जब वह अच्छे से तैयार होती है तब बहुत खुबसूरत लगतीहै।
अब आपका प्रश्न क्या इंसान को उसके पहने जाने वाले कपड़े से जज करना सही है? क्यों और क्यों नहीं ?
यहां पर लड़के के मामा ने नैना को उसके कपड़ो से जज किया और एक अच्छा रिश्ता खो दिया ।
मेरे विचार से किसी भी इंसान को उसके कपड़ो से जज किया जाना सही नही है । क्योकि किसी भी इंसान का व्यक्तित्व उसके कपड़ो सेबहुत उपर होता है।
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राम नाम सत्य है। है के नहीं? तो बोलो न किसी के विवाह में!
हा हा हा !!!
मेरे अनुसार तो कपड़ों का सोच से नहीं, प्रसँग से लेना देना है। जैसे इंटरव्यू में जाके कोई जिम के कपडे पहरे, या ओफ्फिस में कोई पार्टीके कपडे पहरे, या दोस्तों के साथ कोई भारी गहनों वाले शादी के बस्तर पहरे तो अजीब तो लगेगा ही न!
अब यदि आजका आधुनिक सभ्य समाज, बड़ों का आदर न करे तो उसका क्या कर सकते हैं। बचपन से हमको, मर्दों को सिखाया गयाथा बड़ों के सामने पैर फैला के मत बैठो, और अगर बड़े आ जाएँ तो खड़े हो, और बड़ों/महिलाओं के सामने धोती आधी करके मत घूमों, पूरे कपडे पहरो। येही संस्कार महिलाओं को दिए जाते हैं,लेकिन तब याद आता है आधुनिकीकरण।
अरे भाई बीच में तो बिकिनी ही पहरोगे न? तब कौन कुछ बोलेगा, या दोस्तों के सारः हो तो कुछ भी पहरो। लेकिन मन्दिर हो, याओफ्फिस हो, या जिम हो, वहाँ तो बिकिनी नहीं पहरोगे न! स्थान के अनुसार और व्यक्ति के अनुसार वस्त्रों का चयन होना चाहिए।
अरे मैं क्या शॉर्ट्स नहीं पहरता? क्या मेरा मन नहीं करता गर्मी में गंजी में घूमने का? तो क्या महिलाओं के सामने गंजी में घूमूँ? यामहिलाओं के सामने आधी धोती में घूमूँ?
और किसी के सोच में तकलीफ नहीं है, बस आधुनिक औरतों को बात का बतंगड़ बनाना है।
बाकी यह उत्तर मवालियों और असभ्य लोगों के लिए नहीं, वे तो औरत के कपड़े नहीं देखते। वे तो कामकृपण लोग हैं। उनकी बात मैं नहींकर रहा। मैं सभ्य समाज में रहने वाके सभ्य लोगों की बात कर रहा हूँ।
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मेरा यह भी मानना है कि हम दूसरे लोगों की सोच एकदम से नहीं बदल सकते। मुझे याद है 90 के दशक में जब हम स्कूल में थे तोलड़की का जीन्स पहनना बहुत खुली सोच का परिचायक माना जाता था। जब कोई लड़की जीन्स पहने निकलती थी तो सब लोग उसेघूर घूर कर देखते थे। आज यह बात आम हो गयी है। क्योंकि लोग यानी पुरुष आए दिन लड़कियों को जीन्स में देखते हैं तो खास ध्याननही देते। लेकिन यदि आज कोई वयस्क लड़की एक छोटी सी स्कर्ट पहन कर आ जाती है तो सब तो नहीं पर बहुत सारे लोग उसे घूरनेलगेगें क्योंकि इनकी आँखे अभी यह सब देखने की अभयस्त नहीं हुई हैं। कुछ दशक बाद हो जायेंगी। मुझे याद है एक स्कूल मेंलड़कियों के 11–12 वी कक्षा में स्कर्ट्स पहनने पर रोक लगा दी गयी क्योंकि लड़के अपनी आंखों से सिर्फ स्कर्ट्स की लंबाई ही नापतेरहते थे।
अब विदेशों में यह बात आम हैं कोई देखेगा तक नहीं पर भारतवर्ष में अगर आप छोटे कपडे पहन कर चल रही हैं तो बेवजह ही अपनीऔर घूरती आँखे महसूस करेंगी। मेरे विचार से तो यह सब बहुत ही असुविधाजनक है। क्योंकि आज भी सिर्फ बहुत कम लड़कियां छोटेकपड़े पहनती हैं इसलिए लोग यह समझते है कि यह सामान्य बात नही हैं और जो लड़की ऐसा कर रही हैं वो खुले सोच विचार की हैंऔर शादी से पहले सम्बन्ध को तैयार हो जाएगी। सोच तो बिल्कुल गलत है पर क्या करें यकायक तो बदलेगी नहीं। 2–3 दशक लगेगेंजब ज्यादा से ज्यादा लड़कियां अपने हिसाब से जो चाहे पहन सकेगी ।
लेकिन तब तक अपना ध्यान रखें और छोटे इलाकों में परहेज ही करें छोटे कपड़े पहनने से। अब आप चाहे रूढ़िवादी समझे मेरा यहमानना है कि आपका शरीर अपना है और आपको उसका ध्यान भी रखना चाहिए। अगर छोटे कपड़े न पहनने से आपकी आज़ादी परअंकुश लगता है पर आप बेवजह की ठरकी घूरती आंखों से छुटकारा पा सकती हैं तो क्या हर्ज है। उदहारण के लिए यदि आप अपनीगाड़ी जो कि धूल से भरी हो उसे सड़क पर छोड़ जाते हैं तो कोई न कोई शैतान दिमाग उसपर कुछ न कुछ लिख कर चला जायेगा लेकिनअगर आप उसे साफ सुथरी रखेंगे और उस पर कोई धूल न हो तो कोई हिम्मत नहीं करेगा। छोटे कपड़े आपके शरीर पर धूल तो नहीं हैलेकिन धूल लोगों की आंखों में है जो छोटे कपड़ों को गलत समझती है।