Saturday, February 26, 2022

एक फ़ौजी की चिट्ठी

प्रिय 

 तुम्हारी सदा शिकायत रहती है कि मैं तुम्हें कम पत्र लिखता हूं। तुम्हारी शिकायत सही हैतुम्हें मैं इसलिए पत्र नहीं लिखता की कहीं भूलेसे भी तुम्हें मेरे तकलीफ का अंदाजा  हो जाए पर एक सीक्रेट बताऊंमैं रोज तुमसे बात करता हूं।


इस समय मैं बंकर में बैठा हूं। कंकरीली-पथरीली जमीन हैऊपर से झाड़ियों का पर्दा बना रखा है ताकि दुश्मन को हमारे यहां होने काअंदाजा  हो जाए। खतरे की तलवार हर समय लटकती रहती हैअब तुम्हीं बताओ ये सारी बातें तुम्हें कैसे बता सकता हूं?

 चांदतू गवाह बन मेरी अनकही कहानी का। तू जा मेरी प्रिया के पास। इस समय वह छत पर टहल रही होगी क्योंकि खाना खाने केबाद हमेशा वह छत पर टहलने जाया करती है। उसपर मेरा प्यार बरसानाहवा बनकर उसकी लटों को छेड़नाकभी उसकी चुन्नी को उड़ादेना। अगर वह परेशान होकर बालों को बांध ले तो धीरे से उसके गालों को सहलाकर मेरे प्यार का संदेश दे देना। शायद उसका विरहकुछ कम हो जाए।


अपनी दिनचर्या के बारे में बताऊंसुबह होते ही पी.टीके लिए जानावहां से आकर नहा-धोकर सुबह के नाश्ते के लिए मेस पहुंचनाफिर अपने-अपने काम पर लग जानापैरों में भारी-भारी बूटतपती चिलचिलाती गर्मी में मोटे कपड़े की आर्मी ड्रेसकंधे पर पूरे दिनलटकती बंदूकदुश्मनों से लड़ते समय कई बार भोजन का  मिलनाकई-कई किलोमीटर पैदल चलनाजहरीले जीव-जंतुओं से भीआमना-सामना होना-ये सब हमारी जिंदगी का हिस्सा हैं।


दुनिया मुझे वीर कहती है। शहादत पर तमगे पहनाती है पर सच कहूं तो सच्ची वीरांगना तुम हो। मैंने देश सेवा को सहर्ष चुना है औरतुमने तो मुझे चुना था और पाया विरह। मैं कर्मयोगी बन प्रशंसा पाता रहा तुम दीपशिखा सी जलती रही। मैं देश सेवा में शहीद हो जाऊंतो मेरी प्रशंसा में कहानियां गढ़ी जाती है और तब आरंभ हो जाती है पग-पग पर तुम्हारी परीक्षा। मैं देश सेवा में निरत वीर सिपाही अपनेकर्तव्य का वहन इसलिए कर पा रहा हूं क्योंकि तुम वहां मेरे परिवार का संबल बनी हुई हो। मैं धरती मां की सेवा इसलिए कर पा रहा हूंक्योंकि तुम मेरे माता-पिता की सेवा कर रही हो।


देखो तुम्हारे बारे में सोचते-सोचते सुबह हो गई। पूरब में सूरज की लालिता बिखरने लगी। जब तुम्हारे बारे में सोचता हूं तो कष्ट कम होजाता है। कम नहीं हो जाता बल्कि पता ही नहीं चलता। तुम्हारी यादें मेरे लिए आराम का तकिया हैं। तुम्हारी बातें मेरे लिए अकेलेपन मेंभी साथ का अहसास दे जाती हैं। अरे रेये मत सोचना कि तु्म्हारे बारे में सोचते-सोचते मैं कर्तव्य पथ से डिग जाऊंगा।

मैं उस पथ का राही हूं जिसने बस चलना ही सीखा हैआंधी आएं या तूफान कभी  डिगना सीखा है।

ऐसी अनेक बातें हैं जो प्रतिदिन मैं सोचता हूं पर लिख नहीं पाता। आज भी नहीं लिख पा रहा हूं। शायद अनेक पत्रों की तरह ये भी मेराअनकहा प्रेमपत्र बनकर रह जाएगा।


तुम्हारा 


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